कश्मीर फाइल्स अंतिम नहीं है !
मुस्लिम समुदाय शहर में पृथक स्थान बना करके रहता है या कहे अमेरिका के तर्ज़ पर "घेटो कल्चर" के रूप में अपना जीवन यापन करता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है, परन्तु जब इनके घेटो या इलाके के विस्तारीकरण का समय आता है तो वह से लगे हुए हिन्दू परिवारों को विस्थापित जबरन और बलात किआ जाता है ऐसा नहीं है की हमें पहले से नहीं पता था की कैराना, मेवात, ब्रह्मपुरी क्या जगह है और यहाँ के मुद्दे क्या है, परन्तु जब वही नरसंहार उसी तर्ज़ पर हमारे ही घरों से सटे घरों में होता हमने पाया तो मानो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। मै इंगित कर रहा हूँ, इंदौर शहर के मेवाती कॉलोनी में बचे हुए गिनती के हिन्दू घरों की और। अभी मार्च २० को जब मेवाती मोहल्ले समें हिंदुओं पर हो रहें अत्याचारों पर आधारित विश्व संवाद केंद्र मालवा की रिपोर्ट यूट्यूब पर देखी तो मैं दंग रहा गया। शहर के मध्य, या कहे हिन्दू बहुल इलाके राजबाड़ा के बीच से कैसे एक पूरी जमात ने हिन्दुओं को ही विस्थापित करवा दिया। तरीके कोई नए नहीं थे, मुस्लिमों के वही पुराने तरीके कि जब तक संख्याबल में कम रहो साथ रहना और जब धीरे धीरे बड़े तो परेशान करना , नियमित लड़ाई के बहाने खोजना, मध्य रात्रि में हिन्दू घरों के सामने फटाके फोड़ना, हिन्दू घरो के बाहर नशा करना, हिन्दू बहन बेटियों को छेड़ना और प्रतिकार करने पर मारकर कहना की जाओ यहाँ से घर छोड़कर । जब हिन्दू घर बेच कर जाना भी चाहे तो उसे डरा धमकाकर मकान भी कम भाव में किसी मुस्लिम को ही खरीदने देना। और इतना सब सहने पर भी यदि कोई अपना घर न छोड़े तो उसके घर को आग लगा देने तक का दुस्साहस हमारे ही घरों के पीछे बने एक इलाके में हो रहा है और हिन्दू समाज एवं तथाकथित हिन्दू हितैषी राजनैतिक पार्टिया और सरकार चादर ताने विकास की नींद ले रही है।
हाल ही में आयी “द कश्मीर फाइल्स” फिल्म जिसमे कश्मीरी हिन्दुओं मुख्यतः पंडितो का इस्लामिक जिहादियों द्वारा जो नृशंस नरसंहार दिखाया गया उसने मानो हरेक आयुवर्ग के हिन्दू व्यक्ति को झकझोर कर रख दिया। फ़िल्म निर्माता ने जितनी हिम्मत से जानकारी दिखाई, समाज ने भी हांथो हाथ उस जानकरी को ग्रहण किया। इतना ही नहीं, द कश्मीर फाइल्स को देखना मानो एक जलसा, एक उत्सव हो गया । देखकर मन बड़ा प्रफुल्लित हुआ की अब हिन्दू समाज इस प्रकार की अमानवीय आपराधिक घटनाओ के प्रति सचेत हो जायेगा , परन्तु जिसे हम सामाजिक चेतना की लहार समझ रहे थे , एक " इन फैशन" विचार का अनुसरण निकला। हम कश्मीर फाइल्स देख कर कश्मीर के लिए ३० वर्षों बाद चिंतित हो लिए पर हमारे ही प्रदेश में अनगिनत ऐसे कश्मीर नित्य नियमित पनप रहे है और हम बेखबर है या कहे जानबुझ कर अनजान बन रहे है। हमारे ही प्रदेश के रतलाम जिले के सुराणा ग्राम में ही हम हिन्दुओ के लिए आवाज़ छोड़िये फुसफुसाहट भी न कर पाए , हिन्दू समाज जब सत्ताधीशो से मिला तो उन्होंने कहा प्रशासन से मिलो और जब प्रशासन से मिले तो पुलिस अधीक्षक महोदय ने कह दिया की " हिन्दू ही झगडे करते है और अब आये तो राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत घर तोड़ दूंगा " बेबस हिन्दू पिछले तीन वर्षो से जत्थो में अपने ही पैतृक ग्राम से पलायन कर रहा है और हम सुन्न है।(विश्व संवाद केंद्र मालवा के यूट्यूब चैनल पर विस्तृत रिपोर्ट देखे) खरगोन की हालिया हिंसा से भी हम पूर्णरूपेण परिचित है परन्तु उसके लिए भी हमारा आक्रोश सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर ही सिमित है। कोई अतिश्योक्ति नहीं की वही पेट्रोल बम कुछ वर्षों में हमरे घरों पर फेंके जायेंगे और हम ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड और मंत्री महोदय को टैग करते रह जायेंगे।
अब यह कहना की सोचिये ये क्यों हो रहा है निरर्थक है और "उपाय क्या है बताये" यह तो प्रश्न ही हास्यास्पद है। पहले हमें कहा गया की हिन्दू समाज अगर संगठित होकर वोट करे तो हिन्दू हितैषी सरकार उनके कष्टों का निवारण कर देगी परन्तु अब प्रतीत होता है की इस सभ्यतागत युद्ध में हिन्दू समाज को अपनी रक्षा स्वयं अपने हाथों में लेनी होगी क्युकी सरकारें और तंत्र अंततः राजनीतिक अभिलाषा को प्राथमिकता देंगी।
हिन्दू समाज को संगठित और सुगठित होंगे पड़ेगा और हिंसक प्रतिकार करना होगा। जब तक हिन्दू सरकारों के भरोसे बैठे रहेंगे, समाज का शोषण होना निश्चित है। हिन्दू समाज को इतर मज़हबो एवं म्लेच्छों को यह स्पष्ट कर देना चाहिए की अगर किसी मज़हबी मोहल्ले में हिन्दू अल्पसंख्यक है तो वह मज़हबी इलाका भी शहर में अल्पसंख्या में ही है। अगर अंदर रहने वाले हिन्दू को चोट हुई तो बहार रहने वाला हिन्दू भीषण प्रतिकार अवश्यमेव करेगा। अब कुछेक वर्षो का समय शेष है अगर अब हिन्दू समाज भय बिन होई न प्रीति समझ गया तो ही समाज का अस्तित्व रहेगा।
जय हिन्द
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