Much प्रसंग, Very व्याख्या of "घर वापसी"

मेरे लिए एक किताब पढ़ते पढ़ते दूसरी शुरू कर देना पाप है पर जब किताब प्रातः स्मरणीय दोपहर पूज्यनीय सांध्य वंदनीय श्री अजीत भारती जी ब्रो की हो तो पाप का बोझा कम लगता है।

घर वापसी, यह किताब का title काफी deceptive है दो प्रकार से, एक तो यह उस घर वापसी के बारे में बात नही करती जिसके बारे में त्योहार स्वरूप चर्चा होनी चाहिए (मलेच्छ वंश त्याग सनातन स्वीकारने की प्रक्रिया) दूसरा ना ही यह विस्थापन पर ज्यादा चर्चा करती है।
विस्थापन यानी की displacement, migration, 'देशाटन' हमारी भाषा में। यह विस्थापन वही है जिसे मीठे शब्दों और दिखावटी कृतज्ञता पहनाए जाकिर खान जैसे बेच रहे है, उन्हें जिन्हे ये नही पता कि इंदौर छोटा नही है और वहां से दिल्ली जाने में cultural shock नहीं लग जाता।
बहरहाल, जैसा मैं कह रहा था किताब विस्थापन, जोकि इसका मुख्य विषय है पर भी बहुत deep बाते नही करती, अपितु protagonist जब वापसी करता है किसी कारणवश अपने घर, तब उसे जो यादें आती है उसका संस्मरण है। Characters भी बहुत नए नही है, उन लोगों के लिए जो tier 1 cities के अलावा कही भी रहते या रहे है। जैसे मैं personally कम से कम तीन माट साब (हमारे मालवा में मास्टरजी को प्रेम से यही बुलाते है) को जानता हूं जो डॉ विवेकी रॉय के जैसे शत प्रतिशत नही भी तो आसपास है, और फिर अग्निपथ के दीनानाथ चौहान तो है ही। माँ भी बिलकुल माँ जैसी है। मंजरी बहुत उम्दा किरदार है, heroine है, पर मेरे लिए मंटू असल प्रेम है। पहले सोचा मंटू रांझणा का मुरारी है पर आगे देखा, मंटू एक किताबी पात्र है जिसकी मासूमियत फिल्मे न पकड़ पाएगी।
किताब में दृश्यों का जो विवरण है उससे ना जाने क्यों अजीत भैय्या की कविताएं (अगर वे लिखते है) पढ़ने का मन हुआ। प्रेम पर तो गजब पकड़ है ही उनकी।

घर वापसी पूरे समय बाँध कर रखती है, हालांकि जिस कश्मकश और comparison को पढ़ने के लिए ली था वो इसमें नही है परंतु उसके न होने से किताब अरुचिकर बिलकुल नही हो जाती। किताब gripping है, relatable है और जिनके लिए relatable नही भी है उनके लिए मंजरी रवि का प्रेम पढ़ते समय "oh my god! That's the love I crave" (ताली की जगह चुटकी बजाते हुए) तो रहेगी ही, आखिर अजीत भैय्या ऐसे ही थोड़ी ना नई हिंदी के rockstar है।
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